भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि यमन में फंसी भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी को रुकवाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इस मामले में सरकार की दखलंदाजी की सीमा है। केंद्र ने कहा कि यमन सरकार के साथ बातचीत के बावजूद, स्थिति में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है।
क्या है मामला?
निमिषा प्रिया, जो केरल की एक नर्स हैं, को यमन में हत्या के आरोप में मौत की सजा दी गई है। 16 जुलाई को उन्हें फांसी दी जाने वाली है। प्रिया ने यमन में एक यमनी नागरिक को मारने का आरोप स्वीकार किया है, जिसने उसे कथित तौर पर शारीरिक शोषण और उत्पीड़न किया था। प्रिया के अनुसार, उसने शख्स को शांत करने के लिए उसे ओवरडोज दिया था, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई को इस मामले की सुनवाई की, जिसमें प्रिया के जीवन को बचाने के लिए केंद्र सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की गई। वकील ने कोर्ट से अनुरोध किया कि सरकार अपने स्तर पर और अधिक कोशिश करे, और मृतक के परिवार से ‘खून का मुआवजा’ (Blood Money) देकर इस मामले को हल करने की कोशिश की जाए।
केंद्र ने कोर्ट को बताया कि यमन सरकार के साथ बातचीत जारी है, लेकिन यह मामला बेहद जटिल है, और यमन सरकार के लिए यह एक निजी मामले जैसा है। भारत सरकार का कहना है कि यमन की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए वह इस मामले में ज्यादा प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
क्या है खून का मुआवजा?
खून का मुआवजा उस पैसे को कहा जाता है जो एक व्यक्ति की हत्या के मामले में उसके परिवार को चुकाया जाता है। प्रिया की परिवार ने यमनी परिवार से मुआवजा के रूप में 1 मिलियन डॉलर (लगभग ₹8.6 करोड़) की पेशकश की है, ताकि प्रिया की फांसी की सजा को माफ किया जा सके।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संदीप मेहता ने इस मामले पर गहरी चिंता जताई और कहा कि अगर प्रिया की जान जाती है तो यह बहुत अफसोसजनक होगा। उन्होंने केंद्र से कहा कि यह जरूरी है कि यमनी परिवार को मुआवजे के बारे में समझाया जाए। हालांकि, केंद्र ने कोर्ट को बताया कि यमनी परिवार इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और यह मामला अब “ठहराव” की स्थिति में है।
केंद्र का बयान:
एजीआई (एटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया) आर. वेंकटरामणि ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि, “सरकार की दखलंदाजी की सीमा बहुत सीमित है। हम यमनी अधिकारियों से बातचीत कर रहे हैं, लेकिन हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते।” उन्होंने यह भी कहा कि ‘खून का मुआवजा’ एक निजी सौदा है, और सरकार इसके ऊपर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती।
किसी और विकल्प पर विचार?
इस मामले में एकमात्र विकल्प अब खून के मुआवजे के जरिए समाधान तलाशने का बचा हुआ है। हालांकि, यह भी यमनी परिवार की सहमति पर निर्भर करता है। अगर परिवार इसे स्वीकार करता है, तो प्रिया की सजा को माफ किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
निमिषा प्रिया की फांसी के मामले ने एक राजनीतिक और कानूनी विवाद का रूप ले लिया है, जिसमें सरकार की भूमिका सीमित है। इस कठिन समय में, प्रिया के परिवार के पास अब केवल खून के मुआवजे के माध्यम से ही उसकी जान बचाने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की और सुनवाई 18 जुलाई को निर्धारित की गई है।