बिहार में चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणियाँ की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में तीन अहम सरकारी दस्तावेजों – आधार कार्ड, राशन कार्ड और चुनाव आयोग द्वारा जारी पहचान पत्र – को वैध दस्तावेजों के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
विवाद क्या है?
वोटर लिस्ट संशोधन में बिहार के लगभग 80 मिलियन वोटरों को दस्तावेज़ पुनः सत्यापन के लिए कहा गया है, जिसमें आधार कार्ड और चुनाव आयोग के पहचान पत्र का इस्तेमाल प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस कदम को लेकर विपक्ष और नागरिक समाज ने विरोध जताया है, क्योंकि यह प्रक्रिया गरीब, प्रवासी मजदूर और समाज के अन्य कमजोर वर्गों को प्रभावित कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह सवाल किया कि “विशेष गहन पुनरीक्षण” को लेकर कानूनी अधिकार कहां से आता है। अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया का समय चुनाव से ठीक पहले तय करना उचित नहीं है और इससे वास्तविक वोटरों के बहिष्करण का खतरा है।
सरकार का तर्क:
चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया देश में होने वाली बढ़ती शहरीकरण और प्रवास को ध्यान में रखते हुए की जा रही है। इसके अलावा, 2003 के बाद जुड़ी हुई वोटरों के दस्तावेज़ों को सत्यापित करना आवश्यक है। आयोग ने यह भी सुनिश्चित किया कि जिन्हें वोट लिस्ट से बाहर किया जाएगा, उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा।
राजनीतिक विवाद:
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD), ने इस कदम को “साजिश” करार दिया है, जिसमें गरीब और प्रवासी मजदूरों को जानबूझकर बहिष्कृत किया जा सकता है। इन दलों का कहना है कि यह वोटिंग अधिकार को प्रभावित करने और सत्तारूढ़ गठबंधन को फायदा पहुंचाने का एक प्रयास हो सकता है।
निष्कर्ष:
यह मामला बिहार के चुनावी माहौल को और भी गहरा बना सकता है, क्योंकि यह सीधे तौर पर वोटरों के अधिकारों से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जहां इस मुद्दे पर और भी चर्चा होने की संभावना है।