क्या भारत-अमेरिका व्यापार समझौता 48 घंटे में संभव दोनों पक्ष रख रहे हैं अपनी मांगें ,भारत और अमेरिका के बीच एक लंबे समय से प्रतीक्षित व्यापार समझौते को लेकर स्थिति अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है।अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को अमेरिका के लिए खोलें,भारत चाहता है कि अमेरिका कपड़ा, जूते, और चमड़ा जैसे श्रम-प्रधान उत्पादों पर टैरिफ में छूट दे या उन्हें ड्यूटी-फ्री घोषित करें।
वाशिंगटन में चल रही है भारतीय प्रतिनिधि और अमेरिकी प्रतिनिधियों के बीच में समझौते को लेकर आखिरी स्तर पर वार्ता
भारत और अमेरिका के बीच एक लंबे समय से प्रतीक्षित व्यापार समझौते को लेकर स्थिति अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। अगले 48 घंटे में दोनों देशों के बीच यह समझौता संभव है, लेकिन कृषि और डेयरी सेक्टर को लेकर मतभेद अभी भी बरकरार है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि ये क्षेत्र उसके लिए “रेड लाइन” हैं और इन पर किसी प्रकार के समझौते को स्वीकार नहीं किया जाएगा ।
दोनों देशों के व्यापार प्रतिनिधि इस समय वाशिंगटन में अंतिम दौर की बातचीत में जुटे हुए हैं। भारत के अधिकारी तब तक वहीं बने रहेंगे जब तक समझौता पूरा नहीं हो जाता। हालांकि अगर यह सौदा 9 जुलाई तक नहीं हुआ, तो अमेरिका भारत पर रिसिप्रोकल टैरिफ (प्रतिशोधात्मक शुल्क) लगाने की तैयारी कर रहा है।
अमेरिका क्या चाहता है भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में ?
अमेरिका की मांगें: भारतीय बाजार में गहराई से प्रवेश,अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को अमेरिका के लिए खोलें, ताकि अमेरिकी कंपनियां यहां अपनी जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसलें, जैसे मक्का, सोयाबीन, गेहूं और चावल बेच सकें। अमेरिका भारत से इन अनाजों पर आयात शुल्क घटाने की मांग कर रहा है।
वर्तमान में भारत इन पर उच्च टैरिफ लगाता है ताकि देशी किसानों को सस्ती विदेशी फसलों से प्रतिस्पर्धा का सामना न करना पड़े। अमेरिका इन टैरिफों को व्यापार में बाधा मानता है और उन्हें खत्म करना चाहता है।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में भारत के लिए है देश हित सर्वोपरि
भारत की स्थिति: खाद्य सुरक्षा और किसान सर्वोपरि, भारत कृषि और डेयरी सेक्टर में कोई समझौता नहीं करेगा। यह न केवल भारत की आर्थिक संरचना, बल्कि ग्रामीण आजीविका, खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता से भी जुड़ा मुद्दा है। भारत का कहना है कि अमेरिका जिन अनाजों को भेजना चाहता है, वे ज्यादातर जेनेटिकली मोडिफाइड या हाइब्रिड बीजों से उगाए जाते हैं, जो भारत के लिए स्वास्थ्य, पर्यावरण और बीज सुरक्षा के लिहाज से खतरा बन सकते हैं।
यदि भारत इन GM फसलों पर टैरिफ कम करता है, तो ये उत्पाद भारत में सस्ते दामों पर आ जाएंगे और इससे स्थानीय किसानों को भारी नुकसान होगा। इससे देश की खाद्य संप्रभुता और पारंपरिक बीज प्रणाली भी खतरे में पड़ सकती है।
क्या अमेरिका करना चाहता है भारत के डेयरी सेक्टर में प्रवेश?
डेयरी सेक्टर: अमेरिका का दबाव, भारत की असहमति, अमेरिका भारत के डेयरी बाजार में भी प्रवेश चाहता है, लेकिन भारत का यह सेक्टर छोटे किसानों और पशुपालकों से जुड़ा है। यदि विदेशी डेयरी उत्पाद भारत में आते हैं, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था और लाखों परिवारों की आजीविका पर असर पड़ सकता है। इसीलिए भारत इस मुद्दे पर भी कोई समझौता नहीं करना चाहता।
भारत अमेरिका सेभारत-अमेरिका व्यापार समझौते मेंक्या चाहता है?
भारत की मांगें: श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर टैरिफ छूट, भारत की ओर से भी अमेरिका से कुछ स्पष्ट मांगें रखी गई हैं। भारत चाहता है कि अमेरिका कपड़ा, जूते, और चमड़े जैसे श्रम-प्रधान उत्पादों पर टैरिफ में छूट दे या उन्हें ड्यूटी-फ्री घोषित करे।बारात एक जनसंख्या बाहुल्य देश है। इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में श्रमिक कार्यरत हैं और भारत की बड़ी जनसंख्या के लिए ये रोजगार के प्रमुख स्रोत हैं।
यदि अमेरिका इन उत्पादों पर टैरिफ घटाता है, तो भारत का निर्यात बढ़ेगा, रोजगार के अवसर मिलेंगे और आर्थिक वृद्धि को बल मिलेगा।
क्या 9 जुलाई तक समझौता हो पाएगा और अगर नहीं तो क्या होगा दुष्परिणाम ?
अगर 9 जुलाई तक समझौता नहीं हुआ, तो अमेरिका भारत पर रिसिप्रोकल टैरिफ लगा सकता है। इससे भारतीय उत्पादों की अमेरिकी बाजार में कीमतें बढ़ेंगी और उनका निर्यात प्रभावित होगा। इससे न केवल व्यापारिक संबंधों में तनाव आ सकता है, बल्कि राजनीतिक असहजता भी बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
भारत-अमेरिका व्यापार समझौता निश्चित ही दोनों देशों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभदायक हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब दोनों पक्ष अपनी-अपनी प्राथमिकताओं और संवेदनशील क्षेत्रों को समझें।भारत किसी भी ऐसी नीति को स्वीकार नहीं कर सकता जो किसानों, उपभोक्ताओं और खाद्य प्रणाली पर खतरा डाले
। वहीं अमेरिका अपने निर्यातकों के लिए नई बाजार संभावनाएं तलाश रहा है। अब देखना यह है कि 48 घंटे में भारत और अमेरिका किस निर्णय निर्णय तक पहुंचते हैं और यह व्यापार समझौता संभव होता है या नहीं।